आज देख हालत देश की,
बदलते समय वं वेश की।
इक बात मन में जागी है,
कातिल है जो स्वदेश की॥
जन-गण के गान में,
छुपे भारत के सम्मान की।
आरक्षणता के स्तंभ से,
कुचले भार्तित्त्व की जान की॥
जो मिटाई थी, लहर गुलामी की।
कियो भूलती ही जा रही है बातें ,
दी भारत के लिए दी उनकी क़ुरबानी की॥
आजाद भारत का कियो मिट रहा वो हासीन सपना,
हार है यह हमारे संस्कार की।
कियो पनपी है, आरक्षणता से,यह द्वेष की फसल,
जो जहर बनी हमारे ज्ञान - सम्मान की॥
इस भारत में जगाई थी।
कियो सामन्यता की वो ज्योति,
धीमी है पड़ती जा रही॥
कियो मिटा दिए, अधिकार सबके,
कुछ लोगों के विकास में।
आज फिर जरूरत है पड़ उठी,
उस स्वतंत्रता के प्रकाश की॥
उस पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम के।
देकर के एक को आरक्षणता,
तो दुसरे के अपमान से॥
कियो बातें खोखली हो गई,
भारत के सविधान की।
जिस में भारत के पुत्र समान थे,
आज लुट रही इज्जत हर इंसान की॥
की जिसमे सबका सामान अधिकार हो।
भारत के हर इक नागरिक को,
भार्तित्त्व का अभिमान हो॥
हो पूर्ण जाग्रिता की वो लहर,
खुश जिसमे हर इंसान हो।
समान्यता के सम्मान का कर गठन,
बचालो आन अपने अभिमान की॥
मिट जाए हीन भावना।
जिसे देख हर मन में उठे,
उज्ज्वल भारत कि कामना॥
नौकरी मिले पढ़े-लिखों को,
वं आरक्षण हो आर्थिक आधार से।
तांकि गरीब हर जात, धर्म, क़ौम का,
पढ़, कर सके सेवा स्वदेश की॥
इस अभियान में मेरा साथ दो।
तांकि वध कर सकें आरक्षणता का,
और भारत में उज्ज्वलता का वास हो॥
जनरल सामाज भी आगे बढ सके,
इस गांद्दी राजनीती का नाश हो।
हमारे अधिकार की भी बातें हो यहाँ,
पढ़ कर, नज़र झुका दें हम संसार की॥
आपसे, आपके अधिकार की।
आओ हमारे साथियो,
दिखा दो बुलंदी अपने हाथ की॥
तांकि हक़ पाकर अपना सभी,
उज्ज्वल बने, विद्वान भी।
लाएं भारत को भी उच्च स्तर पर,
तारीफ़ करे जगत हमारे ज्ञान की॥
बदलते समय वं वेश की।
इक बात मन में जागी है,
कातिल है जो स्वदेश की॥
जन-गण के गान में,
छुपे भारत के सम्मान की।
आरक्षणता के स्तंभ से,
कुचले भार्तित्त्व की जान की॥
आज देख हालत देश की......
मंगल,आजाद, सुभाष ने,जो मिटाई थी, लहर गुलामी की।
कियो भूलती ही जा रही है बातें ,
दी भारत के लिए दी उनकी क़ुरबानी की॥
आजाद भारत का कियो मिट रहा वो हासीन सपना,
हार है यह हमारे संस्कार की।
कियो पनपी है, आरक्षणता से,यह द्वेष की फसल,
जो जहर बनी हमारे ज्ञान - सम्मान की॥
आज देख हालत देश की....
जो जोत 'भगत सिंह' ने,इस भारत में जगाई थी।
कियो सामन्यता की वो ज्योति,
धीमी है पड़ती जा रही॥
कियो मिटा दिए, अधिकार सबके,
कुछ लोगों के विकास में।
आज फिर जरूरत है पड़ उठी,
उस स्वतंत्रता के प्रकाश की॥
आज देश हालत देश की.....
आज वादे झूठे पड़ रहे,उस पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम के।
देकर के एक को आरक्षणता,
तो दुसरे के अपमान से॥
कियो बातें खोखली हो गई,
भारत के सविधान की।
जिस में भारत के पुत्र समान थे,
आज लुट रही इज्जत हर इंसान की॥
आज देख हालत देश की.....
आरक्षणता ही देनी है तो ऐसे दो,की जिसमे सबका सामान अधिकार हो।
भारत के हर इक नागरिक को,
भार्तित्त्व का अभिमान हो॥
हो पूर्ण जाग्रिता की वो लहर,
खुश जिसमे हर इंसान हो।
समान्यता के सम्मान का कर गठन,
बचालो आन अपने अभिमान की॥
आज देख हालत देश की......
कदम ऐसा उठाओ कि,मिट जाए हीन भावना।
जिसे देख हर मन में उठे,
उज्ज्वल भारत कि कामना॥
नौकरी मिले पढ़े-लिखों को,
वं आरक्षण हो आर्थिक आधार से।
तांकि गरीब हर जात, धर्म, क़ौम का,
पढ़, कर सके सेवा स्वदेश की॥
आज देख हालत देश की.....
उठ जाग कर मेरे साथियो,इस अभियान में मेरा साथ दो।
तांकि वध कर सकें आरक्षणता का,
और भारत में उज्ज्वलता का वास हो॥
जनरल सामाज भी आगे बढ सके,
इस गांद्दी राजनीती का नाश हो।
हमारे अधिकार की भी बातें हो यहाँ,
पढ़ कर, नज़र झुका दें हम संसार की॥
आज देख हालत देश की....
विनय याचना है कर रहा,आपसे, आपके अधिकार की।
आओ हमारे साथियो,
दिखा दो बुलंदी अपने हाथ की॥
तांकि हक़ पाकर अपना सभी,
उज्ज्वल बने, विद्वान भी।
लाएं भारत को भी उच्च स्तर पर,
तारीफ़ करे जगत हमारे ज्ञान की॥
आज देख हालत देश की......
![]() | © Viney Pushkarna pandit@writeme.com www.fb.com/writerpandit |
Social Plugin