हे यार! क्यों हिचकिचाहट है,
सीधी राह पर चलने से।
मंजिलें नहि मिला करती,
रास्ते बदलने से।।
बस ये ही सच्चाई है।
चेहरे कहाँ निखरते हैं,
मुंह पे खाक मलने से।।
ऐसी लहर एक सर्दी की।
कि मोम का हर एक पुतला,
बच गया पिघलने से।।
बन गए साबूत आखिर।
हाथ जो सुगंधित थे,
फ़ूलों को मसलने से।।
सीधी राह पर चलने से।
मंजिलें नहि मिला करती,
रास्ते बदलने से।।
हे यार! क्यों_ _ _ _ _ _ _ _
जो भी रंग है तेरा,बस ये ही सच्चाई है।
चेहरे कहाँ निखरते हैं,
मुंह पे खाक मलने से।।
हे यार! क्यों_ _ _ _ _ _ _ _
तेज धूप मे आई,ऐसी लहर एक सर्दी की।
कि मोम का हर एक पुतला,
बच गया पिघलने से।।
हे यार! क्यों_ _ _ _ _ _ _ _
आप अपने गुनाहों का,बन गए साबूत आखिर।
हाथ जो सुगंधित थे,
फ़ूलों को मसलने से।।
हे यार! क्यों_ _ _ _ _ _ _ _
![]() | © Viney Pushkarna pandit@writeme.com www.fb.com/writerpandit |
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