लो आयें हैं एक नई पहचान लेकर, मिटा गम, सांसों को मुस्कान देकर,
बहुत कठिन है लम्हा लम्हा कर जीना, जो आज धडकन कि आहट में खो गए |
विनय चाहा तो बहुत कहना उनसे, मगर गुमशुदा ये लफ्ज़ हो गए ||
दीदार ए हबीब, एक तेरी रज़ा, तुहीं जाने कहाँ जील, कहाँ खुदा,
खुशी अश्क से भी होती है बयाँ , न कहना कि गिरे आंसू और हम रो गए |
विनय चाहा तो बहुत कहना उनसे, मगर गुमशुदा ये लफ्ज़ हो गए ||
एक आरजू उन्हें खुदा बनाने की, किरणों से जीवन रोशन कराने की,
किया सलाम, जो जुका कदमो पर, कदम आँखों से बड़े हम मोह गए |
विनय चाहा तो बहुत कहना उनसे, मगर गुमशुदा ये लफ्ज़ हो गए ||
जगे तो सुबह की सूरत है वो, डली रात तो चाँद सी खूबसूरत है वो,
हर पल देखें ख्वाब उनके इन आखों में, नीची हूई पलक न सोचो के सो गए |
विनय चाहा तो बहुत कहना उनसे, मगर गुमशुदा ये लफ्ज़ हो गए ||
हो जाएँ चंद बातें तुमसे जो इस कदर, साँसों से धरा तक जाएँ हम बदल,
की मानो जन्मो के प्यासे इस पल, बीज प्यार के दिल में बो गए |
विनय चाहा तो बहुत कहना उनसे, मगर गुमशुदा ये लफ्ज़ हो गए ||
आज कबूल ए खता करते है, की किस कदर तुम पर मरते है,
जो बन साथी जाओ जीवन का, तो कहूँ हम हो एक से दो गए |
विनय चाहा तो बहुत कहना उनसे, मगर गुमशुदा ये लफ्ज़ हो गए ||
![]() | © Viney Pushkarna pandit@writeme.com www.fb.com/writerpandit |
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