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Ashq Jo Aankho Se Beh Aae

 
दो सख्श बन् बैठा हूँ मैं आज कल,
एक जगता है तो एक सोता है, एक हस्ता है तो एक रोता है |
क्या होता है ऐसा प्यार की राह पर चलते चलते,
मैं जिस तरफ़ देखूं विनय, चेहरा उसका उस तरफ़ होता है ||

यूं हुई दास्ताँ आज, अप्रैल की रात को,
जाने कियों सह पाया, छोटी सी बात को |
कौन जाने यादों ने छेड दिया था कैसे जज़्बात को,
थीं आखें तरस उठीं उनसे मुलाकात को ||
मुलाकात के लिए खुदा जज्बाते दिल बनाये,
माफ करना की आज अश्क जो आँखों से बह आये |
लाख समझाया इस दिल मरजाने को,
पर समझे मन काफिर, इस दीवाने को |
कहता कियों बन पागल छाने इन राहों को,
संभल ज़रा पता चले इस ज़माने को ||
जो सूखे लब थे गीले आज इस ज़माने ने कराए,
माफ करना की आज अश्क जो आँखों से बह आये |
खुदी को दो सख्श बना बैठा हूँ मैं आज कल,
खुद से करता हूँ मैं बातें दिन रात हर पल |
खेला कल खुशी में नाम तेरा ले कर के मैं,
जो हारा जा मुकाम पर तो हुए मेरे जज़्बात कतल ||
हारा मैं हूँ तो मुकाम तेरे नाम पर कियों लगाएं,
माफ करना की आज अश्क जो आँखों से बह आये |
यादें तेरी तो दिल में, हर पल रहती हैं,
जब सुनो तुम साथ हो, सांसें ये कहती है |
गुजारिश यह है की ना हों यादें जुदा खुदा,
महकती डाली तेज हवा ना सहती है ||
जो फूल डालिओं से ना गिरें ऐसे फूल हम साँसों में बसाएं,
माफ करना की आज अश्क जो आँखों से बह आये |



© Viney Pushkarna

pandit@writeme.com

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