एक सख्श है जिसको आज का खेल समर्पित करता हूँ,
बैठ नीचे मेरी ‘जान’ को खुशी जीत की अर्पित करता हूँ |
खेला खेल आज मैं तेरे लिए दिल के जज्बातों को सांसों में रख कर,
ऐ खुदा देख किस इन्तिहाँ तक मैं अपनी ‘जान’ से मोहोब्बत करता हूँ ||
खुदा तेरे बंदे ने, आज देख क्या कर दिखाया है,
किया विशवास अपने इश्क पर, आज जो रंग लाया है |
रंग लिया मैंने अपने जहाँ को, अजीब सा नशा छाया है,
खुदा देना ना घमंडी बना, ले शीश दर तेरे झुकाया है ||
आज खेला मैं खुदी के लिए, खुदी को प्रणाम करता हूँ,
आज का खेल ऐ ‘जान’ मैं तेरे नाम करता हूँ |
आज आखों में बसी थी, जिसे ‘जान’ ‘जान’ कहता हूँ,
दो पल ना करूं दूर, ऐसे जहाँ में मैं रहता हूँ |
लबों पर खुशी रख, आखों के छलकाव सहता हूँ,
कैसे कहूँ मैं इस दिल के दरिया में बहता हूँ ||
बहते हुए इश्क दरिया से, चंद यादें और भरता हूँ,
आज का खेल ऐ ‘जान’ मैं तेरे नाम करता हूँ |
जिसको है दिल में बसाया उसका, नाम जाहिर करता हूँ,
वो है सारे जहाँ में एक, जिस ‘जान’ पर मैं मरता हूँ |
वो है साँसों में वो ही दिल में, उसी को सजदा सुबह शाम करता हूँ,
देख ले ना कहीं उसे जमाना, शुपा उसे आँखों में और आखें गुमनाम करता हूँ ||
एक दोस्त ने दिया जो साथ उसका शुकराना शरेआम करता हूँ,
आज का खेल ऐ ‘जान’ मैं तेरे नाम करता हूँ |
सौरव वो सख्श जिसे किया वादा था जीत पाने का,
था इरादा आज खुदी में खुद ही डूब जाने का |
लो आज कर वो वादा पूरा गए, हम साथ निबाने का,
चाहे बैठे थे उस डाल पर जहा डर था टूट जाने का ||
बन निडर मैं खेला जो, अपने प्यार पर मैं मान करता हूँ,
आज का खेल ऐ ‘जान’ मैं तेरे नाम करता हूँ |
![]() | © Viney Pushkarna pandit@writeme.com www.fb.com/writerpandit |
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