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Ardhangini

 
सर्व प्रथम मैं अर्धांगिनी शब्द का अर्थ समझाना चाहूँगा | ये तीन भागों से बना है =>
:- अर्ध = आधा
:- अंग = हिस्सा / भाग / शरीर 
:- नी = नारी
भाव वो नारी जो पत्नी बन पुरुष को पूरा करती है उसे अर्धांगिनी कहा जाता है | जैसे शिवा और पार्वती ||
आज मैं उस अर्धांगिनी के बारे में कुछ लिखने कि कोशिश कर रहा हूँ :- अगर आपको अच्छा लगे तो भी अगर अच्छा ना लगे तो भी अपना सुझाव जरूर दें | शायद अभी मैं इतना काबिल नहीं कि एक नारी को अपने शब्दों में बयान कर सकूं फिर भी मैंने कोशिश कि है नारी का एक मुख्य किरदार लिखने की :- अर्धांगिनी

इस जहान के रिश्ते हैं अनेकों, मूँद मैं आँखे हर तरफ़ जो देखूं,
दिखता है निस्वार्थ भाव से सेवा करना, अपने पति के लिए दिन भूखा गुजरना |
क्या कहूँ कैसे कहूँ है सच्चा प्यार जहान में, पिला पानी पति को खुद आँसू भरना ||

आज हर दर्द का एहसास होता है, जो हो दूर साथी तो कैसे दिल ये रोता है |
मालूम हुआ क्या दर्द है हर उस पत्नी का, बैठ कैसे पति का इंतज़ार होता है ||
बैठ पंडित क्या कोई देगा बरोसा, पर हर पल संग अर्धांगिनी का ही विशवास होता है |||

भुला खुद की खुशी जो खुश चाहे तुजीको, आज तो ज़माना करता प्यार है खुदी को |
नहीं कोई बनाता साथी यादों का, आज हर पल बदलता इंसान होता है ||
बन साथी बैठा अधिकार है पंडित, ऐसा अटूट अर्धांगिनी का विशवास होता है |||

अधिकार अपना जो समझे तुम पर, मोह उसे धन दौलत का |
सम्मान तुझी से बस चाहे, डर उसे दुनिया भर का कभी होता है ||
जिसका प्यार बने तेरे लफ्ज़ रे पंडित, तेरी आस पर अर्धांगिनी का विशवास होता है |||

ओह यारो छोडना कभी साथ उसका, खुदा भी करे सतकार जिसका |
सब जाने इस जहाँ में कि , शक्ति से ही मिल शिवा का पूर्ण कैलाश होता है ||
जो देती है हर मोड पर साथ तुम्हारा, उस साथ में अर्धांगिनी का विशवास होता है |||

इस जहाँ में हैं अर्धांगिनी के नाम अनेकों, ये पंडित उसे अपनी जान कहता है |
मैं चाहूँ उसके अंग संग सदा रहना, जैसे बादलों से संग आकाश होता है ||
मैं जानू मेरी जान संग मेरे, मेरी अर्धांगिनी का प्यार भरा विशवास होता है |||

अपनी अर्धांगिनी का सत्कार करो | और कभी किसी मोड पर उनसे अलग मत होना |



© Viney Pushkarna

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