यारो यादों को साथ लिए मैं चलता हूँ, हर सुबह ले नाम शाम को ढलता हूँ ,
हैं चाहत ने दी ताकत ऐसी की गिर गिर के भी उठ चलता हूँ,
मगर ऐसे हो गए हैं हालात के, माफ करना कर अलविदा मैं जहान से चलता हूँ |
विनय नाम मेरा, करता विनती ही रहा हर सवेरा,
झुका सर माँगा प्यार को, जो झुकता न था मेरा |
किसे कहूँ किस पर इलज़ाम लगाए बंदा ये खुदा तेरा,
बस इतना ही कहता हूँ जो हुई गलती हमसे तो उसे बुला तुम देना |
देख आज के हालात मैं कल से डरता हूँ,
माफ करना कर अलविदा मैं जहान से चलता हूँ ||
मुझे आता नहीं लड़ना अपनों की कही बातों से,
मगर अब नहीं रहा जाता बिन मुलाकातों से |
रोता है दिल ये विनय हर दिन और रातों में,
माफ करना जो अश्क आ जाएँ इस नजीज की यादों से ||
इन यादों को लिए साथ मैं आज निकलता हूँ,
माफ करना कर अलविदा मैं जहान से चलता हूँ ||
जो हुई कोई गलती मुझसे अनजाने में,
माफ कर देना यारो हर गुनाह दीवाने के |
पंडित हार गया आज जो अपनों से,
न दम था इस सारे कातिल ज़माने में ||
किए गुनाहों का भार लिए आज मैं जलता हूँ,
माफ करना कर अलविदा मैं जहान से चलता हूँ ||
मेरे जाने के बाद यारो इतना तुम कर जाना,
मेरी अर्थी के जलते किसी आशिक का निकाह कराना |
जब हो जाए राख मेरी ठंडी बैठे शमशान की सेझा पर,
तो ला उसे मेरे दोनों परिवारों के चरणों से लगा जाना ||
आज छोड़ माटी मैं खाली हाथ लिए मलता हूँ,
माफ करना कर अलविदा मैं जहान से चलता हूँ ||
वक्त शायद है गुजरता जा रहा इन अँधेरी रातों में,
दिखता है हर सुबह मुखडा उनका, रुलाता है सब बातों में |
न जाने कब बदलेंगे विचार उन सबके, करते एहंकार के,
मंधिरों में राधे शाम पूजें, और रहते हैं खिलाफ प्यार के |
उठेगा सूरज प्यार का ये विश्वास लिए सांसे डलता हूँ,
माफ करना कर अलविदा मैं जहान से चलता हूँ ||
आखरी लफ्ज़ मेरे तुम यारो याद रखना,
सच्चे प्यार के लिए दिल में जगह और होंठों पर फरियाद रखना |
चंद दिन हैं अभी बाकी विनय का थोडा मान रखना,
दी है जो घरवालों को आज मेरी खुदा जुबान रखना ||
न भागने का किया था वादा, लो आज मैं पूरा करता हूँ,
माफ करना कर अलविदा मैं जहान से चलता हूँ ||
मेरे आखरी बोल मेरी उस जान ले लिए,
हूँ शुकार्गुजार दी मुझे आशिक की पहचान के लिए |
झुका सर मांगता हूँ माफ़ी न मना घर वालों को पाने के लिए,
अगर है प्यार तो न गिरना एक भी अश्क इस दीवाने के लिए ||
रश्मि खुदा दी तेरी, आज आखों में भरता हूँ,
माफ करना कर अलविदा मैं जहान से चलता हूँ ||
कुछ कहना चाहता हूँ मैं दोनों परिवारों को भी,
करना ऐसे ही सलाम हर उठते सूरज को ही |
आपके उठे सर मेरा सीना तान देंगे ,
मगर न करना किसी के प्यार को सलाम कभी ||
होगा दर्द मुझे टूटे सपनों का, मैं ये फरियाद करता हूँ,
माफ करना कर अलविदा मैं जहान से चलता हूँ ||
है अभी दिन बाकी परिणाम आने के,
लिखता रहूँगा विचार दीवाने के |
जिस दिन लगे की मिट गया दीवाना,
फूल ले कर अर्थी पर चढाने आ जाना ||
![]() | © Viney Pushkarna pandit@writeme.com www.fb.com/writerpandit |
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