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Last Day (Leo in my hands)

आज तारिक 28 nov दिन सोमवार था,
यमराज न जाने किस पर सवार था |
आज एक अरसे से छुपे आँसू बह आए,
जिंदगी ने दिया ज़ख़्म एक और बार था ||

आज मेरा एक साथी मेरे हाथों में दम तोड़ गया,
इस कातिल ज़माने में मुझे अकेला छोड गया|
न जाने आज कितनी आवाजें लगाई जान को बुलाने में.
वो तो नहीं आई मगर एक साथी सांस छोड गया ||
वो साथी जिस पर मुझे खुद से भी जायदा विश्वास था,
वो साथी जिसे मूंदते आँखे हमारे साथ का आस था ||

अभी कल की ही हैं बातें जब इन हाथों से घर ले कर आया था,
उसके साथ खेला और गुनगुनाया था, हर बात उससे था करता, आज उसी ने रुलाया था |
जो सालों मेरा सहारा बना, मेरे बुलाने पर जो दौड़ा है,
आज आँसू छलक आए जो इन्ही हाथों में दम उसने छोड़ा है ||
पिछली बार जान के कदमों में उसकी जान का वास था,
इस बार भी वो आ जाते शायद उसे भी येही आस था ||

वो तडपता था तो आँसू घिरते गए, मेरे दिल पर कटार फिरते गए,
जब भी देखता उसकी नज़रों को, काले बादल घिरते गए |
जब उसकी आँख से एक आँसू निकला, मेरे हाथों हाथों से पैर निकलते गए,
उसकी आखरी आवाज सुनने को बैठा रहा, मगर उसके सवास ही निकलते गए ||
हाथ कांपते थे जब जब गंगा जल उसके मुह में डाला था,
मैं ये शरेआम कह सकता हूँ की खुदा सा पाक उसका याराना था ||

जब कभी मैं कुछ दिनों बाद घर आता, सबसे पहले मिलने आता था,
वो दोस्त था ऐसा जो बचपन में खूब भगाता था |
जब कभी होता था अकेला तो पास सबको बुलाता था.
याँ तो खुद आ जाता था पास याँ सारा घर सर पर उठाता था ||
जब कभी ठण्ड लगनी तो मेरे कमरे में आ जाता था,
जब किसी की न सुनता था पर मेरा कहा हर हाल में निभाता था ||

मुझे याद है वो दिन बचपन के जब मैदान में खेलने जाता था,
दौड दौड और करके बचों सी हरकतें कितना हसाता था |
अभी कल की हैं बातें जब भाई के साथ स्कूटर सैर पर जाता था,
घर पर बैठा करता था शैतानी, बगीचा तैहस नैहस कर आता था ||
नहीं भूल सकता है याद पल जब उसे गोदी में उठा घूमता था,
और वो चोरी से मेरी कॉपी किताब और लिफाफे उठा भाग जाता था ||

वो दोस्त आज चला गया, जो सबको हसाता था,
और सारे घर को अपनी देह्शत से बचाता था |
वो दोस्त आज चला गया जो सच्चा याराना निभाता था,
जिसकी आवाज से दिल भी मुस्कुरा जाता था ||
वो दोस्त आज चला गया जिसको मैं अपने गम सुनाता था,
जो चाहे बोल नहीं सकता था मगर सब समझ जाता था ||

आज 11:26  पर जो वो गया, अपने सारे काम निपटा गया,
खुद सारा जागरण सुना, और ज़माने को सुना गया |
जाते जाते धुप बत्ती तक करा गया,
और चंद पल तडफने के बाद उस जोत में समा गया ||
जाते जाते उसने अपना एक और धर्म निभाया था,
कल शाम को जान के जन्मदिन का फल मुहं को लगाया था ||

आज सुबह जब उसने स्वास छोड़े, जब जिंदगी के सब नाते तोड़े,
उसकी आँखों ने न किसी की तरफ देखा, शायद किसी का इन्तेज़ार था |
मैंने इतनी आवाजें लगाई, उसको मृतुम्जय गाथा सुनाई,
कान में ॐकार सुनाई, शायद उस शिवा को भी येही स्वीकार था ||
जो आँसू किसी अपने के अपनों ने दिए वो छुपाये बैठा था,
मगर क्या कहूँ उस खुदा दीवाने को जो लिखी किस्मत में रुलाये बैठा था ||

अपने हाथों से खोदा खड्डा, अपने हाथों से नमक लगाया,
खुदी डाली चादर उस पर, खुदी उसको था दफनाया |
खुदी उसकी कबर पर, पत्थर था गाड़ कर आया,
पर न जाने कियों अभी भी लगता है कि उसने कुछ है सुनाया ||
सुबह से गिरते आंसुओं को मैंने बड़ी मुश्किल से थमाया,
हैं जिंदा अभी भी दिल में, बस न बाहर आओ ये समझाया ||



© Viney Pushkarna

pandit@writeme.com

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