मैंने मांगी रौशनी तूने अँधेरा कर दिया,
न जाने कियों कोसों दूर सवेरा कर दिया,
मैं वही जो हर दिन तेरे चौखट पर आता था,
तूने मारा मुझे और नाम भी मेरा कर दिया |
याद कर वो दिन जब फूल चढ़ाता था,
तुझसे मिलने उठ हर सुबह आता था |
सबसे पहले गिर धरा पर शीश निवाता था,
दोस्तों में रख पहचान पंडित कहलाता था ||
मेरी उस पहचान को दूर तूने ही कर दिया,
तूने मारा मुझे और नाम भी मेरा कर दिया........
तू सच सच करता था, क्या मेरे सच का किया,
जीवन की इस पूंजी को एक झूठ से हरा दिया |
मैंने अपनाया हर रिश्ते को पूरा आधर किया,
गिरते देखा जो अर्श से खुद को बिषा दिया ||
एक साथ ही माँगा तुझसे दूर वो भी कर दिया,
तूने मारा मुझे और नाम भी मेरा कर दिया.........
याद है तुझे जो पंडित तेरे दर पर आया था,
तुझे ही तो जान मैंने साक्षी बनाया था |
तूने ही कर जुदा कितनी रातों में रूलाया था,
खिलती हुई आस को तोड़ आंसू बहाया था ||
नहीं होगा कोई और साथी फैसला मैंने भी कर लिया,
तूने मारा मुझे और नाम भी मेरा कर दिया........
तू देख कैसे किये वादे भी पूरे आज मैंने कर लिए,
व्रत रखा, उपहार दिया और दिन सीने में भर लिए |
कोशिश करता हूँ पूरी परिवार को खुशी देने की,
तू कर याद कैसे रो रो कर भी पल वो मैंने जर लिए ||
मगर तू जीता नहीं चाहे मुझे मौत बराबर कर दिया,
तूने मारा मुझे और नाम भी मेरा कर दिया..........
तूने विशवास खतम करना चाहा, _ _ _ को बल दिया,
तूने रोके कदम मेरे, _ _ _ को इतना प्रबल किया |
तूने ही की झूठ की अगवाई, _ _ - _ _ का कहा चल गया,
तेरी ही लिखे पर आज पंडित गुमनाम शक्श बन गया ||
मगर तूने दे दे कर दर्द इरादों में सहस भर दिया,
तूने मारा मुझे और नाम भी मेरा कर दिया.............
आज मेरी ऐसी जिंदगी के तुम ही गुनाहगार हो,
तूने ही किया नज़रंदाज़ मेरी हर एक पुकार को |
तूने ही बिछाए कांटें क्या तुझसे ही फ़रियाद हो,
तिल तिल कर चाहा तुमने करना खतम मेरी हर सांस हो ||
तो ले आज से मैंने भी ये सिलसिला शुरू कर दिया,
तूने मारा मुझे और नाम भी मेरा कर दिया.........
जिस दिन पूरे कर दिए, बचे किये वादे उस प्यार से,
देखेगा संसार क्या तू भी मुझे सतिकार से |
जल्द ही पंडित जान होंगे रूबरू इस सारे संसार से,
कट सकता है सिर पर झुका न झूठ के प्रहार से ||
जल्द ही दूंगा जवाब सवाल माँ जो तूने था किया,
तूने मारा मुझे और नाम भी मेरा कर दिया........
न जाने याद है कि नहीं जान दिन किये वो प्यार के,
अपनों से लड़ते लड़ते दिए हर दम उन्हें सत्कार के |
मैं तो आज भी हूँ कर रहा, पूरे वादे हर उस रात के,
बस तुम न कहीं भूल जाना पल वो बरसात के ||
छोड अकेला जंगे मुहोब्बत में तूने भी थोडा दर्द दिया,
तूने मारा मुझे और नाम भी मेरा कर दिया.......
शायद नहीं चुका सकता एहसान मैं मेरे अपनों का,
जिन्होंने रखा ख़याल हर जगह मेरे सब सपनों का |
भाई भाभी, माँ पिता जी के कहे उन वचनों का,
चंद यारों का साथ खड़ तोड़े मुश्किल के टखनों का ||
बस जीवन साथी न बदलने का फैसला कर लिया,
तूने मारा मुझे और नाम भी मेरा कर दिया......
![]() | © Viney Pushkarna pandit@writeme.com www.fb.com/writerpandit |
Social Plugin