क्या कहूँ इस कातिल ज़माने से, जब अपने ही आँखें मूँद चलते हैं,
पंडित जाना है अब गलतफहमी से कैसे रिश्ते राह बदलते हैं |
कैसे कहें जिंदगी में चलते साँसों के साथ भी एक दिन ढलते हैं,
हम हर दम देते हैं उनका साथ जिनका हाथों में ले हाथ संबलते हैं ||
पंडित जाना है अब गलतफहमी से कैसे रिश्ते राह बदलते हैं |
कैसे कहें जिंदगी में चलते साँसों के साथ भी एक दिन ढलते हैं,
हम हर दम देते हैं उनका साथ जिनका हाथों में ले हाथ संबलते हैं ||
देखो आज किए सब वादे निभाए खड़ा है |
आज भी किसी की खुशी है रखती मईने,
आज भी रेगिस्तान में फूल हाथों में उठाए खड़ा है ||
कोई आज भी ज़ख़्म दिल के भुलाये खड़ा है,
कोई आज भी प्रेम के नैन बिछाए खड़ा है |
कोई सह कर ज़ख़्म खुद्दारों के, आज भी सब थमाए खड़ा है,
पंडित कोई आज भी किसी की पहचान को ठेस से बचाए खड़ा है ||
कोई आज भी प्रेम के नैन बिछाए खड़ा है |
कोई सह कर ज़ख़्म खुद्दारों के, आज भी सब थमाए खड़ा है,
पंडित कोई आज भी किसी की पहचान को ठेस से बचाए खड़ा है ||
इतना कुछ हो चूका कोई आज भी सब भुलाए खड़ा है,
कोई समझता है मजाक तो कोई रिश्ते निभाए खड़ा है |
कोई आज भी सच अपनों से छुपाए खड़ा है,
पंडित कहीं टूट न जाए वो, सब अपनों को सच बताये खड़ा है ||
कोई समझता है मजाक तो कोई रिश्ते निभाए खड़ा है |
कोई आज भी सच अपनों से छुपाए खड़ा है,
पंडित कहीं टूट न जाए वो, सब अपनों को सच बताये खड़ा है ||
जो करते हैं प्यार, हैं सदा साथ निभाते,
कोई आज भी राख मुहं पर लगाए खड़ा है |
जिसको अपना समझा पंडित कर वादा अपनाया,
उसकी इज्जत अपनी इज्जत बनाये खड़ा है ||
कोई आज भी राख मुहं पर लगाए खड़ा है |
जिसको अपना समझा पंडित कर वादा अपनाया,
उसकी इज्जत अपनी इज्जत बनाये खड़ा है ||
ये ज़माना उस पर ताक लगाए खड़ा है,
अज्ज पंडित फिर भी सर जुकाए खड़ा है |
हर सच बोला है साथ निभाया है,
कोई आज भी रिश्तों की डोर हाथ थमाए खड़ा है ||
अज्ज पंडित फिर भी सर जुकाए खड़ा है |
हर सच बोला है साथ निभाया है,
कोई आज भी रिश्तों की डोर हाथ थमाए खड़ा है ||
ये ज़माना है जो कई बातें बनाये खड़ा है,
एक वो है जो साजिश बनाये खड़ा है |
बहुत लड़ा उस साजिश के खिलाफ पंडित,
पर कोई अपना ही लिए अपनों मूह गुमाए खड़ा है ||
एक वो है जो साजिश बनाये खड़ा है |
बहुत लड़ा उस साजिश के खिलाफ पंडित,
पर कोई अपना ही लिए अपनों मूह गुमाए खड़ा है ||
आज चंद लम्हों को आग लगाए खड़ा है,
ज़माना इस जिंदगी को आग में जुल्साए खड़ा है |
पंडित आज आखिरी बार हाथ बढाये खड़ा है,
जोकि घरवालों कि खुशियाँ भी लटकाए खड़ा है ||
ज़माना इस जिंदगी को आग में जुल्साए खड़ा है |
पंडित आज आखिरी बार हाथ बढाये खड़ा है,
जोकि घरवालों कि खुशियाँ भी लटकाए खड़ा है ||
अगर इस बार भी कोई आगे न बड़ा,
तो ये पंडित खुदको हराए खड़ा है |
कोई सबकी जिंदगियो पर लगाए है सट्टा,
और पंडित खुदको उसके सामने झुकाए खड़ा है ||
तो ये पंडित खुदको हराए खड़ा है |
कोई सबकी जिंदगियो पर लगाए है सट्टा,
और पंडित खुदको उसके सामने झुकाए खड़ा है ||
अगर कोई सब छोड जाता है दूर,
तो पंडित वहीँ साथ निभाए खड़ा है |
मगर जो लगा है ताक साजिश कि लगाए,
वो कोई और ही खेल बनाये खड़ा है ||
तो पंडित वहीँ साथ निभाए खड़ा है |
मगर जो लगा है ताक साजिश कि लगाए,
वो कोई और ही खेल बनाये खड़ा है ||
मुझे पता है प्यार सच सुनाये खड़ा है,
तभी तो पंडित भी सब पिछला भुलाये खड़ा है|
मगर अगर इस बार हुआ कुछ ऐसा जो हिला दे,
तो उस गलती से पंडित मूह गुमाए खड़ा है ||
तभी तो पंडित भी सब पिछला भुलाये खड़ा है|
मगर अगर इस बार हुआ कुछ ऐसा जो हिला दे,
तो उस गलती से पंडित मूह गुमाए खड़ा है ||
जिसका है सारा खेल वो इंसान मुह छिपाए खड़ा है,
पंडित सब आपको बताये खड़ा है |
अपने प्यार के लिए कदम बढाये खड़ा है,
कुछ हो न जाए इस बार इस लिए घबराये खड़ा है ||
पंडित सब आपको बताये खड़ा है |
अपने प्यार के लिए कदम बढाये खड़ा है,
कुछ हो न जाए इस बार इस लिए घबराये खड़ा है ||
कोई साजिश बना रहा है और जिसके लिए बन रही है वो उसका नाम छुपा रहा है,
पंडित सारा सच सुना रहा है, जो हुआ पीछे मैं नहीं वो लोगों के रोब्रू करा रहा है |
अभी तो अगर आप सब साथ निभाते हो तो, ये सब खत्म कर सकते हैं हम मिल कर,
मगर जो हो गया वो कामयाब तो, सुन लो वो कई जिंदगियां और मेरी जुबान मिटा रहा है ||
पंडित सारा सच सुना रहा है, जो हुआ पीछे मैं नहीं वो लोगों के रोब्रू करा रहा है |
अभी तो अगर आप सब साथ निभाते हो तो, ये सब खत्म कर सकते हैं हम मिल कर,
मगर जो हो गया वो कामयाब तो, सुन लो वो कई जिंदगियां और मेरी जुबान मिटा रहा है ||
![]() | © Viney Pushkarna pandit@writeme.com www.fb.com/writerpandit |
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