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Akhiri Koshish

 ३ फ़रवरी फिर दिन शुकरवार का, न थमते आंसुओं को किसी का इंतज़ार था,
न जाने कब क्या कैसे हो गया, आज गिर पड़ा जो ऊँचा उठाया मैंने विश्वास था |
फिर एक उम्मीद ले कर चला हूँ न कहीं मेरा प्यार अकेला पड़ जाए,
आखरी कोशिश है की कर हौंसला अब तो वो साथ चल पाए |


गिरते आँसू खुद के आज थमा न गिरें उनके आँसू सोचता हूँ,
गिरे जो उनके दो अश्क तो अपनी पहचान से पोंचता हूँ |
किए हैं वादे हर दम साथ देने के, करने हैं पूरे सोचता हूँ,
न जाने इस नजीज के लफ्ज़ उनके कानों में रम्झेंगे,
आज आखरी कोशिश है कि वो अब तो समझेंगे |


कितने सपने सझोए थे किसी अपने के ख्यालों में,
ढूँढता था अक्सर उनकों लोगों के पूछे सवालों में |
कई रातें नहीं सोइया ख्याल था किए वादों में,
पंडित लिए निष्ठां था पूरी इरादों में |
न जाने कब मेरे जज्बात उनके आँगन लम्केगें,
आज आखरी कोशिश है कि वो अब तो समझेंगें |


एक मौखोल बना दिया आज के ज़माने ने,
वो गिरा दिया जिसे लगते है साल बनाने में |
जिंदगी बीत जाती है अक्सर मिल पाने में,
कुछ ऐसा ही होता है लाशों के मैह्खाने में |
न जाने कब जा कर ये शीशे फिर चमकेंगे,
आज आखरी कोशिश है कि वो अब तो समझेंगें |


एक झूठ तो उन्होंने भी बोला था,
शायद किसी डर से ये ज़हर सांसों में घोला था |
मगर पंडित रिश्ता रूह का मैंने बोला था,
कर कबूल भूला ज़ख्मों को कबूला था |
न जाने अब जा कर वो क्या खड़े हो जायेंगे ,
आज आखरी कोशिश है कि वो अब तो समझेंगे |


ये उम्मीद है कि अब का रिश्ता सच की बुनियाद से होगा,
है साथ मेरा तो उनका भी हाथ थामे मेरा हाथ होगा |
कई मुश्किलें देखीं है पहले जो हुई आगे तो साथ फौलाद होगा,
चलेंगें साथ लिए रिश्ते सारे, मगर पहले सच का साथ होगा |
न जाने अब क्या वो ये एहसास को दिलों तक रम्झेंगे,
आज आखरी कोशिश है की वो अब तो समझेंगे |




© Viney Pushkarna

pandit@writeme.com

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