महक उठे आज खवाबों की शोर से, खुदा जाने कहीं मंजिले गुलिस्तान होगा,
या खुदा दे मेरी अर्ज़ को इनायत, कि जिस ओर देखे पंडित ठहरा ये समां होगा ||
दो कदम बढते जो माँ कि गोद को, ठहरा समां इन पलों को रोक दो,
मुझे इस धरती को लगा सीने कुछ कहना है, ऐ खुदा मुझ पे नीली चादर तो ओड़ दो |
ये धरती मेरे आँगन की महकते फूल उगती है, येही चंद्र शेखर से फौलाद बनती है,
तुम देखना ओह मेरे खुदा कैसे महक जहाँ में फैलेगी, ज़रा बादलों से कहना थोडा नल तो छोड दो ||
महक इस धरती की खुदा की इनायत, जरा इस की चादर रूह पर ओड़ लो .....
मंगल, सुभाष, टोपे भारत के सपूत, दी शहादत लिए वतन के ना जाए कोई लूट,
महक साँसों में भर किया आज़ादी कूच, एक एक सांस लिए देश के वाह ब्राहमण पूत |
मती दास, सती दास, दयाल दास के ऐसे रंग रूप , ना डरना कह गए कदम छुएगी तेज धुप,
पंडित झुका सिर खड़ा वाह वाह रे केसरी दूत, पुश्तों से चला है आया ब्राह्मितव का वजूद ||
शुरुआत से ही था कहना एक ही एक ब्राह्म वचन उनका कि जुलम को सहना छोड़ दो,
महक इस धरती की खुदा की इनायत, जरा इस की चादर रूह पर ओड़ लो .....
एक महक शास्त्रों में भी वो महक ज्ञान की रे, अंतर्शक्ति से ब्रह्माण्ड हिलादे वो शक्ति ध्यान में रे,
बड़ा असान है इस जहां में शेर बनना कई है सवा शेर, जब आती बात बुद्धि की ये शेर राख के ढेर |
पहले सीखो इंसान बनना फिर पाओ ज्ञान सच का रे, बुज़दिल बड़े चालक करते इतिहास में हेर फेर,
मिट्टी इस वतन की कियों लगाते नहीं माथे पे, जब देखो फिरते हो मांगते एक टुकड़ा वतन का हम से ||
अब तो जागो थोड़ी शर्म करो बुजदिलो यूं परिवार बदलना छोड दो
महक इस धरती की खुदा की इनायत, जरा इस की चादर रूह पर ओड़ लो ....
लक्ष्मण देव भारद्वाज को ना जाने कोई आज, सब बैठे हैं पहनाए नव रंगों का ताज,
कैसे हुई थी शुरुआत ना जाने कोई दिलीप कुमार, कहते हैं उसको मिस्टर ए० आर० आज |
महक किसी की सरफरोशी की तो किसी की संगीत गायकी सरताज,
हो ब्राह्मण तो छोडो बाबे वाबे ज़रा खुद को जानो पहले महक तुझी में भरमार ||
अहम ब्रह्मासमी कह रे बंदे, शिवोहम को रूह तक जोड़ लो
महक इस धरती की खुदा की इनायत, जरा इस की चादर रूह पर ओड़ लो ....
![]() | © Viney Pushkarna
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