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Krodh Ek Shraap


चलती कलम को रोकना चाहे मुमकिन नहीं जमाने से,
अक्सर और चला करती है कलम को दबाने से |
मगर एक शक्श है जो इसको भी मुमकिन करा देता है,
क्रोध एक श्राप, जो सब कुछ गवा देता है ||
महकते बगीचे की चाहत, दिल को मिलती राहत,
मुस्कान खिलती इसी फूल को देखते, प्रेम की राह तक |
एक गंद ऐसा जो हर खुशबु को बुला देता है,
क्रोध एक श्राप, जो सब कुछ गवा देता है ||
वो साथी साथ अपने, वो देखे सब सपने,
सीना तान चलना और वो आगे कदम रखने |
इस आग से इंसान सब जला देता है,
क्रोध एक श्राप, जो सब कुछ गवा देता है ||
वो बच्चपन की यादें, भाई-बहन की बातें,
वो मीठा मीठा झगड़ना, वो बच्पन्न की सौगातें |
एक दिन क्यों इंसान कहीं घुमा देता है,
क्रोध एक श्राप, जो सब कुछ गवा देता है ||
अच्छी प्यारी नगरी में पंडित भी रहता है,
लग जाता है दुःख शायद जब कोई पराया कहता है |
इन रिश्तों में भी जब कोई तन्हा होता है,
क्रोध एक श्राप, जो सब कुछ गवा देता है ||
आज क्रोध को किसी ने मात दी है,
मैं बैठा था अंशु ने मुस्कान दी है |
अक्सर बच्चा ही बलवान होता है,
क्रोध एक श्राप, जो सब कुछ गवा देता है ||




© Viney Pushkarna
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