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Behan Khaas Ban Gai

एक मुस्कान जो मिले से रिश्ते ख़ास बन गई,
काफी आए तूफ़ान पर वो ख़ास एहसास बन गई |
हम झुके जो उस शिव के दर, वो उनकी पहचान बन गई,
कहते हैं खुदा सब में हैं, तो गेस ये कविता किसके नाम बन गई |


मैं चला कदम बड़ा कर, फिर गिरा ठोकर भी खा कर,
हो घुमान गया था हमको, बताया शिवा ने आ कर |
ऐसे माँ दुर्गा की छवि हमारे स्वास रम गई,
माँ भी कहा उसे, तो गेस ये कविता किसके नाम बन गई |

एक अरसे से सुनसान थी एक जगह रिश्तों में,
आज एक रिश्ते से वो जगह अरमान बन गई,
चंद पलों की दिखाई राह, आज मुकाम बन गई,
एक रिश्ते पर लिखी, तो गेस ये कविता किसके नाम बन गई |


एक दिन डगमगा गए कदम जब भाई के,
तो पाक शिवा की ज्योति एक इंसान बन गई |
थामा बहन बन हाथ, वो हौंसले का पैगाम बन गई,
शिव ज्योति आ मिली, तो गेस ये कविता किसके नाम बन गई |

खंडहर हो चुके की, जैसे पुनः जान बन गई,
मिट चुके की जैसे, पुनः पहचान बन गई |
भाई की बहन के रूप में खुशियाँ तमाम बन गई,
दुआएं जिसे, तो गेस ये कविता किसके नाम बन गई |


कई बार कुछ लम्हों की जिंदगी गुलाम बन गई,
सुबह जो थी मुस्कान वो क्या शाम बन गई |
भाई दिए दर्द, वो सह कर ठहराव बन गई,
भाई दोषी, तो गेस ये कविता किसके नाम बन गई |

बहुत गिराए हैं आंसू अनजाने में, जिससे वो अनजान बन गई,
उसकी मासूमीअत इस जहाँन में, माहान बन गई |
उसकी हसी देखूं तो भाई की भी मुस्कान बन गई,
उस मुस्कान को देख, तो गेस ये कविता किसके नाम बन गई |


है खवाहिश वो ऊँचाइयाँ छूं ले, जो सच्च का पैगाम बन गई,
खुशियाँ मिले मुझे यूं ऐसे, वो जीजा की अर्धांग बन गई |
नव वर्ष वो मुस्कान ले कर आयें, कहें मैं माँ बन गई,
मामा बना मैं, तो गेस ये कविता किसके नाम बन गई |


मन में तो बहुत है एक बहन के लिए कहने को,
पर लफ्ज़ नहीं मुझ मूर्ख के पास कलम से बहने को |
कोशिश और करूंगा जी बहने मेरे गहिने हों,
वो शक्श बड़ा धनवान जिसके पास बहने हों ||



© Viney Pushkarna
pandit@writeme.com
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