बहुत लिख लिख कर रुक गई जो, चुप है नहीं झुक गई वो,
फिर चलने को तयार है, जो पल दो पल के लिए छुप गई जो,
सियाही का रंग करना कुछ गहरा,
जो खो पहेली में मुश्किलों से जूज्ती है,
आज मेरी कलम मुझसे सवाल पूछती है ।
यूं बैठे यादों के महखाने पे, कुछ तो हुआ है इस ज़माने में,
जो बैठे है लोग हर दम बड़ा बन दिखने में,
शायद सकूं मिलता है खुद को खुदा कहलाने में,
आज ऐसे इस पाप की क्यों आवाज़ गूंजती है,
आज मेरी कलम मुझसे सवाल पूछती है ।
मैं लिखता आया कई सालों से,
किया इन्साफ सदा ख्यालों से,
हर बात सच्ची लिखी है जिंदगी के आशियाने की,
फिर कियों आज भी एक आँख आंसू हूनजती है,
आज मेरी कलम मुझसे सवाल पूछती है ।
अक्सर पूछे मुझसे मन मेरा,
किस मट्टी का बना है तन तेरा ,
कियों जिंदगी को दावं पर लगाता है,
न मुमकिन को मुमकिन करना है कर्म तेरा,
कर साहस तेरी आत्मा इन्कलाब बोलती है,
आज मेरी कलम मुझसे सवाल पूछती है।
बोले मुझे तुम तो सच्च दिखाते हो,
जिंदगी में अच्छे संस्कार फैलाते हो,
तुम चाहते हो हर दिल गुलाब बनाना,
फिर क्यों इस जग के लिए दुश्मन बन जाते हो,
मुझे सवालों में ये स्याही आज दबोचती है,
आज मेरी कलम मुझसे सवाल पूछती है।
आज बच्चा माँ बाप से बेगाना हो गया,
जिसे देखो वो वो हुस्न शोहरत का दीवाना हो गया,
आज धागे इतने कमजोर हो गये रिश्तों के,
देख पंडित तेरी कलम का दिल भी रो गया,
तुझसे तो तेरी कलम बड़ी जो हर दम सच सोचती है,
आज मेरी कलम मुझसे सवाल पूछती है।
चंद दोस्त जो हालातों में साथ निभाते है,
अक्सर लोग बड़ा होते ही छोटों को भूल जाते है,
वो सीना जिससे बच्चपन से लग कर सब भूल जाते थे,
आज वोही सीना देख कर अपनी राह बदल जाते है,
ऐसा क्यों है दुनिया कियों रिश्तों को फूक्ती है,
आज मेरी कलम मुझसे सवाल पूछती है।।
![]() | © Viney Pushkarna
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