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PAPA

सुन्ना ज़रा, ज़माने वालों,
कुछ  कहना है, मुझे भी आज ।
अपने पापा, की परी मैं,
अब बनना है, मुझे ही ताज ॥ .

सुन्ना ज़रा, ज़माने वालों, कुछ  कहना है, मुझे भी आज ।

बच्पन्न  से ही, समझें मुझे बेटा,
उनकी आँखों ने, मुझे था समेटा ।
वो पलकों पर, मुझको बिठाएं,
पाया है उनको, जहाँ भी है देखा ॥

वो बच्पन्न की यादें,
 भुलाये न भूले,
न भूले कल, न भूले ये आज .....

सुन्ना ज़रा, ज़माने वालों, कुछ  कहना है, मुझे भी आज ।

कल की हैं बातें, जो वो थे बताते,
करो  जो वादे, तो पूरे है निभाते ।
तुम बनना सशक्त, जो जाना है आगे,
बन्न मुस्कान सबकी, दुनिया हँसा दे ॥

तो हस्ती ये दुनिया,
लगेगी  प्यारी,
मैं इन्ही में हूँ,
और रहूँगा सदा ॥

सुन्ना ज़रा, ज़माने वालों, कुछ  कहना है, मुझे भी आज ।

मैं  कियों पगली, होती हूँ उदास,
जब हैं पापा, सदा मेरे पास ।
मैं चलती तो चलते,
मैं बैठी तो बैठें,
मेरी हर ज़रूरत में,
होते है साथ .....

सुन्ना ज़रा, ज़माने वालों, कुछ  कहना है, मुझे भी आज ।

करती हूँ वादा, है पक्का इरादा,
नाम पापा का, रौशन यूं होगा,
बनूँगी वो जिसमे कदम बढ़ाया,
साक्षी इसका ज़माना ये होगा ॥

कदम जो बढाऊं, न आंसू बहाऊं,
न हो उदासी, साथ खुश रहें पापा ॥

सुन्ना ज़रा, ज़माने वालों, कुछ  कहना है, मुझे भी आज ।




© Viney Pushkarna
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