लफ्ज़ हकीकत बयान करने को हैं आतुर,
पर डर है लोग मुझे ही कसूरवार न बना दें।
जिस सूली पर चढ़ाना चाहता हूं हैवानियत को,
अंधे लोग कहीं मुझे ही उस पर न लटका दें।
मगर अगर मैं आवाज़ नही उठाऊंगा तो,
खुदही अपनी चिता को कैसे जलाऊंगा।
मुझे जवाब देना है औलाद को अपनी भी,
वरना झुका सिर झुका सिर औलाद का कैसे देख पाऊंगा।
एक युध्द को आरंभ कर, बढ़ चला हूँ मैं,
रात नींद, दिन चैन, खो चुका हूं मैं।
कौन दस्तक दे रहा है, बेआबरू जो माँ,
बदला कल - आज, तो बदल गया जहान?
कौन कालिख चेहरों पर मल रहा है यूँ,
राहों पर बेपर्दा नारी, आज खड़ी है क्यों?
क्यो अश्लील चित्र, चलचित्र नग्न हैं क्यों,
पुरुष छोड़ो नारी भी इसमें है मगन क्यों?
वस्त्रों को काट छांट शान समझो न,
तन ढको यह मान है, अपमान मानो न।
रौंगटे हैं खड़ उठे, जख्मों को देख कर,
सिनेमा है नासूर, जाता हर असभ्य छेड कर।
जबसे प्रेम वासना दोनो एक कर दिए,
जिसने बचाना था वही रेप कर गए।
यू ताड़ रहे है अंगवस्त्र, मानसिक बीमारी है,
नग्न चित्रों को बना होर्डिंग, बेचे व्यपार हैं।
याद रखना तुम, तुम भी जलोगे इस आग में,
अपनी बेटी, बहु को कैसे बचाओगे इस अगात से।
मेरी माताओं बहनो, बेटियों, है गुज़ारिश आज,
छोड़ो गंदगी भरा, दिखावे का यह ताज।
हाथ जोड़ खड़ा हूँ, एक फरियाद मेरी मान लो,
थोड़ा ज्ञान ले, अपनी संस्कृति पर तो ध्यान दो।
क्यों सास को दुश्मन, बहु को नीचा दिखाते हो,
क्या अपने ही जीवन साथी को टुकड़े कर देना चाहते हो।
क्यों मखौटों सा जीवन कर, दर्शन पात्र बन जाते हो,
छोड़ अपने वैदिक ज्ञान को, पश्चात शैली अपनाते हो।
इस शैली ने, मर्यादाओं को है भंग किया,
शिक्षक के आदर्श गए, विद्यार्थी बेरंग किया।
भाई बहन से राखी न, सहेली का सम्पर्क चाहे है,
और बहन क्या कम करे, छिप होटलों में भागे है।
नशा बाप करे, बेटों को शराब पर लगाए है,
गाली सुनकर बाप से माँ बीवी को बेटा सुनाए है।
सोची यह ढेर गाज़ीपुर सा, किसने तुमको थमाया है,
किसने गंदगी परोसी, और किसने नाम कमाया है।
पंडित बोलते सब बोल गया, सच का घूंट तुम्हें भरना है,
संग चलना है यां डरना है, यह फैसला तुमको ही अब करना है।
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