तो लीजिए आज आपके समक्ष कुछ ख़ास पेश करते हैं ।
सूरज उगता सब देखें पर, उसकी जवाला का आभास नहीं,
बन्दे तू मंजिल क्या पाएगा, जब राह का तुझे एहसास नहीं ।
तू बढ आगे हो मजबूत, कभी मिटे जीने की प्यास नहीं,
वो क्या गगन को छूएगा, जिसे खुद पर ही, विशवास नहीं ।।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र, ये कोई अभिशाप नहीं,
कर्म वर्ण हैं ये चारो, क्यों लोगों को यह ज्ञात नहीं ।
आज शिक्षा के दाता को, भी क्यों शिक्षा प्रात नहीं ,
अहंकार में जीते है सब, जब तक लगता कोई ताप नहीं ।।
कुछ सुनो आज के बाबा की, जिन्हें वैदिक ज्ञान आत नहीं,
अपने पाऊँ हाथ लगवावें, पर सात्विकता का वास नहीं ।
खोल दूकान नए धर्म चलाएं, पर अधर्म का है हर मास यहीं,
परमात्मा तो बहुत दूर, इन्हें गीता उपदेश तक याद नहीं ।।
चलिए आज की, नारी की ही सुन लो, जिससे होत, था कभी नाश नहीं,
आज ऐसी हो चली, इसे चल-चित्रों से अवकाश नहीं ।
चित्र देख कर चरित्र गिराया, जिसका कोई दिन रात नहीं,
कैसे पंडित चुप रहे, कैसे कह दे कोई बात नहीं ।।
खोल आखें देख लो, नौजवानो का है नाश यहीं,
पैसों के लिए सब सच छोड़ें, कोई प्रेम प्यार का दास नहीं ।
माँ बाप ने सिखाया नहीं, बने हमदर्द यह कभी हाथ नहीं,
पैसों में बिकते बिकते, आज भाई भाई के साथ नहीं ।।
नहीं कोई सखा संबंधी, ज़ज्बातों को अपनाएं नहीं,
क्या कहें इन काफिरों का जो, शिवा के कहर से घबराए नहीं ।।
चंद छलिये भी होत इस महफ़िल में, जो कभी शर्मायें नहीं,
छल जाएँ बड़े प्यार से, उस शिवा से भी घबरायें नहीं ।नहीं कोई सखा संबंधी, ज़ज्बातों को अपनाएं नहीं,
क्या कहें इन काफिरों का जो, शिवा के कहर से घबराए नहीं ।।
चल पंडित तू लिखदे सब, है तेरी कलम का है काम यही,
तू चाहे अभी गुमनाम है, पर पहिचान तेरी बदनाम नही ।
बोला सच, सुनना चाहूं सच, झूठे तो शरे आम कई ,
शिवा बक्श मुझे गुण माला, न आये अज्ञानता की छावं कभी ।।
रखना हाथ मुझ दास पर, डगमगाने न देना नाव कभी,
जब जब होऊं कमजोर, तू देना हिम्मत आन तभी ।
पहले लडूं अपने आप से, अवगुण मुझमे आ पाएँ नहीं,
जब चलूँ फक्र से सीना तान, भूले से भी निगाहें झुक जाएँ नहीं ।।
![]() | © Viney Pushkarna
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