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Kya Kabhi Socha Hai


आज भरी महफ़िल में मैं चंद सवाल पूछता हूँ, गूंजेगे सबकी जुबानी मेरे अल्फाज़ सोचता हूँ |
हो सकता है कि आज  मेरी आवाज दब जाए, मगर खुल उठेगी एक दिन समाज कि आँख सोचता हूँ ||

एक बगीचे में चंद फूलों को देख, माली मुस्कुराता है,
कियों फूल गुलाब का अव्वल नंबर पर आता है |
कैसे दिल को छु जाती है महक ला जवाब सी,
कैसे गिरें औंस तो पंखुडियो से शर्माता है ||

यारो ये बताना कियों यह अपना बना जाता है,
क्या कभी सोचा है यह कैसे साँसे महकता है |||

प्यार खुदा कि रहमत ऐसी, जो हर इंसान जिंदगी में पता है,
कुछ प्यार को समझते हैं मजाक, पंडित सीने में बसता है |
कैसे कोई रोते होए, ज़माने से  आंसुओं को छुपता है,
सह सह कर अकेले दर्द फिर भी, साथ घरवालों का चाहता है ||

कियों घर कि खुशी के लिए कोई छुप छुप आँसू बहता है.
क्या कभी सोचा है एक हिस्सा बिन दुझे के कैसे रह पता है |||

विनय कर कर के इबादत कोई, आशियाना बनाता  है,
लगा कर उसमे साँसों के मोती, जी जान से सझाता है |
कैसे कोई दिल के शोर को, कर लब बंद दबाता है,
कैसे कोई अपनी अर्धांगिनी से, बिना मिले रह पता है ||

हो कर एक भी अगर, घर वालों का साथ दिल चाहता है,
क्या कभी सोचा है कि इंसान कैसे बिन सांसों के रह पता है |||

माँ-पिता के उपकारों को, जीने का हिस्सा कोई बनाता है,
आज अगर कोई ले उनको, साथ साथ चलना चाहता है |
जाने ये ज़माना कियों रिश्तों के आड़े आता है,
जाने कियों इंसान इस ज़माने से घबरा जाता है ||

माँ - पिता को साथ रखने के लिए जब बच्चा आंसूं बहता है,
क्या कभी सोचा है कि बच्चा भी गम छुपाता है ||

अलग रहना और कहना, दूर रह कर दिल बताता है,
जुड़ीं हों साँसे तो, कहा भी कुछ जाता है |
अगर कर दें जिस्म जान से अलग तो रंग दिखता है,
देखना चंद ही घंटों में रंग काला पड जाता है ||

अगर कर दें जुदा किसी इंसान को तो वो दिल का हाल सुनाता है,
क्या कभी सोचा है कि पंडित जान के बिना कैसे रह पता है |||

राधा किशन कि मूरत को ज़माना शीश जुकता है,
दिए उनके  प्यार सन्देश को कोई पढ़ पता है |
फिर कियों ये ज़माना मंदिर डोंग रचाता है,
जब सतकार ही नहीं प्यार का तो कियों खुदा खुदा चिल्लाता है ||

मैं पूछूं आपसे ज़माने वालों, कियों बच्चा साँसे छोड जाता है,
क्या कभी सोचा है कि कोई मौत का दरवाजा कियों खटखटाता है |||

आज प्यार कियों ज़माने में व्यापार सा हो जाता है,
आज कियों प्यार को एक मजाक सा समझा जाता है|
क्या इसमें गलती बड़ों कि नहीं जो क्या प्यार नहीं बता पाता है,
याँ गलती है उस इंसान कि जो प्यार को खुदा सा अपनाता  है ||

क्या पिता अपनी पत्नी बिन चंद महीने रह पाता है,
क्या कभी सोचा है कि कियों परिवार प्यार से दूर रहने कि सझा सुनाता है |||

इस संसार में कोई ऐसा भी है, जो प्यार को प्यार से मिलाता है,
कोई कमल ऐसा भी है जिसे विनय हमारा रहनुमा कह पाता है |
आज अपनों से गया हार वो जो ज़माने में अपनी पहचान बनाता है,
जब समझें अपने मोल प्यार का, तो खुद को इंसान जलाता है ||

कियों कोई अपना ही अपनों कि चिता सझाता है,
क्या कभी सोचा है कि कियों कोई मौत को गले लगाता है |||

होतीं है हर माँ बाप को बच्चों से उम्मीदें, मगर उनके प्यार को कोई सुनाता है,
जो कुछ सह रहें है हो कर अपनों से दूर, कियों समझना नहीं कोई चाहता है |
जब अपने जाएँ प्यार के सामने, तो क्या ज़माना प्यार को हराता है,
अब और कैसे कोई बच्चा अपने माँ बाप से कहे कि कितना वो किसी को चाहता है ||

आखिर कियों कोई बच्चा कुछ घरवालों को बताने से घबराता है,
क्या कभी सोचा है कि आखिर कौन आपके बच्चे को रुला जाता है |||

जो हों जवाब मेरे सवालों के तो हमे भी लिख देना, जो हों जवाब तो पैगाम को सलाम लिख देना |
हैं साँसे जब तक लिखते रहेंगे हम प्यार कि कहानी. होए कोई गुनाह तो कर एहसान लिख देना ||




© Viney Pushkarna

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