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Brahmand Garjna

 हे शिवा दे ताकत मुझे कि हर कमजोर की ढाल बनूं,
सिर हो ऊँचा कर कर्म हर ब्राह्मण की पहचान बनूँ |
चलूँ मैं परशु ले कर और शास्त्रों से विद्वान बनूँ,
जो कदम बड़ें शत्रु के तो कर्म क्षत्रिय मैं ठान बनूँ ||

देख शिवा तेरो दास ले कर आस है शीश तेरो सामने झुकाया,
ब्रह्माण्ड में गर्जना करने को एक इंसान सामने आया||

मैं ही नभ्केतन हूँ, है हर्ष मेरा ही नाम यहाँ,
मैं ही हूँ पंडित, जिसका लिखना है काम यहाँ |
मैं ही हूँ प्रेम जिसका रहे साँसों में है वास सदा,
मैं ही हूँ प्रशांत जिसका जीतेगा एहसास सदा ||

ब्रह्मा का पूत ब्राह्मण सदा विद्वान कहलाया,
ब्रह्माण्ड में गर्जना करने को एक इंसान सामने आया||

किया है तेज़दार है परशु रण में लड़ने को,
कटेगा वो जो खड़ा सनातन पर वार करने को |
शास्त्र और शस्त्र मिलें हैं पाप नाश करने को,
दिल बड़ा है हमारा हर जन से प्यार करने को ||

झुका नहीं कबहू तबहु ब्राह्मण वीर कहलाया,
ब्रह्माण्ड में गर्जना करने को एक इंसान सामने आया||

अब है जरूरत मेरे दोस्तों एक मुकाम पाना है हमें ,
हैं जो हमें बाँट रहे उन्हें कुछ कर दिखाना है हमें |
ब्राह्मण, क्षत्रिय, शुद्र, वैश्य का रहस्य बताना है हमें,
इसे जात से निकाल कर वास्तव समझाना है हमें ||

इस वस्तिविक्ता को हमारे वेदों ने हैं बतलाया,
ब्रह्माण्ड में गर्जना करने को एक इंसान सामने आया||

दो निश्चय है अभी ये किए कैसे हिन्दुस्तान बनाएं,
भोज इन फिरंगियों का कैसे सिर से हटाएं |
गजनी, जार्ज़ जैसे आखिर कियों भारत में आए,
कितने नए धर्म बना कर भारत को नोच नोच है खाएं ||

इन कुत्तों को निकालने को एक झंडा फ़हराया,
ब्रह्माण्ड में गर्जना करने को एक इंसान सामने आया||

चंद हरामी खाएं है भारत का, गुणगान पाक के गाते.
मुझे समझ नही आये, हम कियों भाई है बुलाते |
उनकों देती है सरकार पैसे, जब हज्ज पर है जाते,
हमे लगा अमरनाथ पर पैसे, हैं ऐसे गुलाम बनाते ||

जवाब दो मंदिरों का पैसा सरकारों ने किओं खाया,
ब्रह्माण्ड में गर्जना करने को एक इंसान सामने आया||

न खोजना मुझे, न मुझसे नाम मेरा पूछना,
मैं हूँ तुम सब में,मुझे मुकाम तक हैं पहुंचना |
मेरी पहचान हर भारतीय हो ये है मेरा सोचना,
हर गद्दार देश के को शेर के जैसा दबोचना ||

मैं पंडित सिर्फ पंडित जागो का नारा लाया,
ब्रह्माण्ड में गर्जना करने को एक इंसान सामने आया||



© Viney Pushkarna
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