मैं नींद में था शायद चल रहा एक बहन ने मुझे उठा दिया,
जब था मैं गिरने वाला ज़मीन पर, एक बहन ने सहारा लगा दिया |
मैं चल रहा था उस चोटी पर न जाने किसने किनारा लगा दिया,
पर जब गिरने वाला था तो शिवा ने बहन का सहारा दिला दिया ||
मैं नींद में था शायद चल रहा एक बहन ने मुझे उठा दिया ||
पंडित चला मंजिल की ओर था शायद कांटा लहू बहा गया,
हम रोए नहीं ज़ख़्म ले कर भी, कोई माँ सा हौंसला दिला गया |
हम चले फिर रफ़्तार से, मंजिल छूने की ओर,
ऐसा एक अपना हमे रौशनी का राह दिखला गया ||
मैं नींद में था शायद चल रहा एक बहन ने मुझे उठा दिया ||
तेरे चरणों पर आज ‘पंडित’ जुका, जो जुका न ज़माने से,
हम तो अकेले हो गए थे शायद, किया मना था किसी ने अपनाने से |
जिंदगी नासूर सी लगने लगी थी, लगता था डर दिखने से,
कोई आज इस नासूर पर बहन के हक से मलहम लगा गया ||
मैं नींद में था शायद चल रहा एक बहन ने मुझे उठा दिया ||
एक रौशनी से है चाहत था नाम जान उन्हें दिया,
सब लबों से कहते हैं हमने प्यार दिल से किया |
जिंदगी में जब हारा उनकी आन की खातिर, न हौंसला था किसी ने दिया,
आज जो चला हूँ दो कदम तो बहन ने हाथ थाम लिया ||
मैं नींद में था शायद चल रहा एक बहन ने मुझे उठा दिया ||
मैं पंडित एहसानमंद हूँ जो तूने मुझे भाई है कहा,
पंडित ने है है कोशिश की ज़ज्बात जो है लिख रहा |
जो हो कोई गलती तो माफ कर देना इस नादान को,
तूने ही बटकते इस इंसान को है राष्ट दिखला दिया ||
मैं नींद में था शायद चल रहा एक बहन ने मुझे उठा दिया ||
![]() | © Viney Pushkarna |
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